Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii ऊर्जा का संक्षिप्त वर्णन - Brief description of Energy in Hindi

ऊर्जा का संक्षिप्त वर्णन - Brief description of Energy in Hindi

 ऊर्जा (Energy)

किसी भी कार्य को करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते है। ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो विभिन्न रूपों में रूपान्तरित किया जा सकता हैं।

ऊर्जा का मापन (Measurement of Energy) 

MKS तथा S. I पद्धति में ऊर्जा का मापन जूल में किया जाता है। इसी प्रकार CGS पद्धति में ऊर्जा का मापन अर्ग (Erg) में किया जाता है।

ऊर्जा को वॉट घण्टा तथा किलोवॉट घण्टा में भी मापा जाता है।

1 वॉट घण्टा (Watt hour) = 3600 जूल 1 किलोवॉट-घण्टा = 1000 x 3600 जूल या 3.6 x 10'6 J

ऊर्जा के विभिन्न रूप (Various Forms of Energy) 

साधारणतः कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है। सभी प्रकार की ऊर्जा यद्यपि किसी न किसी स्रोत से प्राप्त की जाती हैं परन्तु इनके रूप में परिवर्तन भी होता रहता है। ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) के प्रथम नियम के अनुसार, "ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है, केवल इसके रूप में परिवर्तन किया जा सकता है।"

ऊर्जा का संक्षिप्त वर्णन - Brief description of Energy in Hindi

पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में ऊर्जा उपस्थित हैं। ऊर्जा के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

(1) यान्त्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy ) - यान्त्रिक ऊर्जा के दो रूप हैं- एक स्थितिज ऊर्जा एवं दूसरा गतिज ऊर्जा। यान्त्रिक ऊर्जा का उपयोग वस्तु को गतिशील या स्थिर करने तथा दैनिक जीवन में वाहन, वायुयान, क्रेन, साइकिल आदि चलाने में किया जाता है।

(2) रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy )-रासायनिक ऊर्जा पदार्थों के बीच संचित रहती है। विभिन्न प्रकार के 1. ईंधनों जैसे पेट्रोल, डीजल, कोयला इत्यादि में रासायनिक ऊर्जा संचित रहती है।

प्रकाश संश्लेषण वह प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। प्रकाश की ऊर्जा का प्रयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से शर्करा जैसे कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण होता है।

(3) ध्वनि ऊर्जा (Sound Energy)-ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है, जो हमारे कानों को सुनाई देता है। ध्वनि की तरंगे किसी माध्यम में उत्पन्न एक कम्पनमान विकृति है जो दो बिन्दुओं को सीधे सम्पर्क किए बिना ही ऊर्जा को एक बिन्दु से दूसरे तक ले जाती है।

बादलों में बिजली कड़कने से इमारतों में भी कम्पन्न होने लगता है। माइक्रोफोन एक प्रकार का उदाहरण है जो विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित करता है। ध्वनि ऊर्जा के उपयोग ध्वनि यंत्रों को बजाने में तथा चिकित्सा के क्षेत्र में किया जाता हैं।

(4) प्रकाश ऊर्जा (Light Energy ) - प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है जो हमारी दृष्टि के संवेदन का कारण है। प्रकाश, विद्युत बल्ब, सूर्य, मोमबत्ती, लैम्प इत्यादि स्रोतों से प्राप्त होता है। सूर्य सम्पूर्ण ऊर्जा का स्रोत है जो ऊष्मा तथा प्रकाश ऊर्जा प्रदान करता है। सूर्य से प्राप्त प्रकाश को सोलर पैनल के द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर किया जाता है।

(5) विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy)- यह ऊर्जा का एक रूप है। किसी निश्चित समय में विद्युत धारा द्वारा किए गए कार्य की मात्रा विद्युत ऊर्जा कहलाती है। विद्युत बल्ब, विद्युत ऊर्जा को प्रकाश में परिवर्तित करता है। विद्युत ऊर्जा से बल्ब में लगा फिलामेंट श्वेत तप्त हो जाता है तथा प्रकाश देता है। विद्युत ऊर्जा का उपयोग विद्युत मशीनों तथा गाडी, मोटरों को चलाने में किया जाता हैं।

(6) चुम्बकीय ऊर्जा (Magnetic Energy) - यह एक प्रकार की ऊर्जा होती है। इसका उपयोग किसी वस्तु को चुम्बकित करने के लिए किया जाता है। यह लोहे के टुकड़ों को सरलता से अपनी तरफ खींच सकती है। इस ऊर्जा का प्रयोग क्रेन, विद्युत मोटरों, टेलीफोन, हैड फोन इत्यादि में करते हैं। इन सभी यन्त्रों में चुम्बकीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए चुम्बक का उपयोग करते हैं।

(7) ऊष्मीय ऊर्जा (Thermal Energy) -ईंधन को जलाने से प्राप्त ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा होती है। ऊष्मीय ऊर्जा का उपयोग सोलर यंत्रों में भोजन पकाने में, चिकित्सीय उपचार में किया जाता है। जैसे- भाप इंजन, डीजल इंजन ।

ऊर्जा का अपव्यय (Wastage of Energy) 

अधिक ईंधन खपत करने वाले वाहनों, सड़कों के किनारे लगी लाइटो का दिन में जलने से मरकरी तथा ट्यूब लाइट बल्बों का उपयोग से ऊर्जा का अपव्यय होता है। पृथ्वी पर उपलब्ध सभी संसधान सीमित है जो कि अपव्यय के कारण एक समय पश्चात् समाप्त हो जाएंगे। वर्तमान में प्राकृतिक ऊर्जा का अपव्यय हो रहा है। अपव्यय के कारण सम्पूर्ण पृथ्वी ऊर्जा संकट से गुजर रही है। कोयला, तेल आदि फॉसिल ईंधनों की कमी हो रही है।

ऊर्जा को संरक्षित करने के विभिन्न तरीके

घरों में ऊर्जा का उपयोग प्रकाश, खाना पकाने, हीटिंग के लिए और अन्य घरेलू उपकरणों के संचालन के लिए किया जाता है। कुछ नीचे दिये गये तरीकों को अपनाकर कर इन क्षेत्रों में ऊर्जा की बचत की जा सकती है-

(1) जब प्रकाश की आवश्यकता न हो तो लाइट बंद करें। 

(2) ईंधन का प्रयोग कम से कम किया जाय।

(3) ऊर्जा बचाने के लिए सीएफएल का प्रयोग करें। 

(4) दिन में सौर ऊर्जा ईंधन से चलने वाले वाहनों का विकल्प खोजा जाए।

(5) वोल्टेज व ऊर्जा संरक्षण की स्थिति को सुधारने के लिए मोटर सहित उपयुक्त आईएसआई मार्क वाले कैपेसिटर का प्रयोग करना चाहिए। 

(6) ध्वनि प्रसारक यंत्रों का कम उपयोग करना ।

ऊर्जा के सीमित व असीमित स्रोत (Limited and Unlimited Source of Energy) 

उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के स्रोतों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है-

(1) सीमित ऊर्जा (Limited Energy)-प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार सीमित हैं जैसे- कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, लकड़ी आदि। ऊर्जा के सीमित स्रोतों का उत्पादन तथा इनका प्रयोग सीमित रूप से ही किया जा सकता है। ऊर्जा के सीमित स्रोतों को परम्परागत ऊर्जा (Conventional energy) स्रोत भी कहा जाता है। सीमित ऊर्जा के स्रोत निम्नलिखित हैं-

i) कोयला

ii) पेट्रोलियम

(iii) प्राकृतिक गैस

(2) असीमित ऊर्जा (Unlimited Energy ) - प्रकृति में वह स्रोत जो असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, ऊर्जा के असीमित स्रोत कहलाते हैं। इनका उत्पादन तथा उपयोग वर्षो तक किया जा सकता हैं। ऊर्जा के असीमित स्रोत को गैर - पारम्परिक ऊर्जा (Non Conventional Energy) स्रोत भी कहा जाता है।

असीमित ऊर्जा के स्रोत निम्नलिखित हैं-

(i) सोलर ऊर्जा 

(ii) पवन ऊर्जा

(iii) महासागरीय (ज्वार भाटा) ऊर्जा

सीमित ऊर्जा के स्रोत (Limited Sources of Energy ) 

सीमित ऊर्जा के स्रोत निम्नलिखित हैं-

(1) कोयला (Coal)- मानव सभ्यता के क्रमिक विकास के कार्बनिक युग में लगभग 255-350 लाख वर्षों पूर्व भूमि की गर्म तथा आर्द्र सतहों में कोयले की उत्पत्ति हुई थी। इसकी उत्पत्ति नदियों के तटीय इलाकों तथा दलदलों में स्थित प्राचीन पेड़ों के नष्ट होकर भूमि में दबने के कारण भूमि के अन्दर की गर्मी तथा दबाव के फलस्वरूप लाखों वर्षों के समयान्तर में पीट एवं कोयले में परिवर्तित होने से हुई थी।

प्रमुखतः कोयला तीन प्रकार का होता है- ऐन्थ्रासाइट (Anthracite) या सख्त कोयला, बिटुमिनस (Bituminus) या नर्म कोयला तथा लिग्नाइट (lignite) या भूरा कोयला ।

(2) पेट्रोलियम (Petroleum ) - यह विश्व की अर्थव्यवस्था का मूलाधार है। कच्चा पेट्रोलियम एल्केन हाइड्रोकार्बनों का जटिल मिश्रण होता है, इसलिए इसे प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) के द्वारा शुद्ध किया जाता है। इस विधि से अलग-अलग तापमान पर इसके संघटकों (Components) को अलग किया जाता हैं तथा कई पदार्थ ।

जैसे- पेट्रोलियम गैस, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल, चिकनाई का तेल (Greasing oil), पैराफिन मोम, एसफाल्ट आदि प्राप्त होते हैं ।

(3) प्राकृतिक गैसें (Natural Gases) - पृथ्वी में दबे हुए मृत जीवों एवं पेड़-पौधों के सड़ने-गलने से 'प्राकृतिक गैसों' (Natural Gas) की उत्पत्ति होती है। इन गैसों में प्रोपेन, ईथेन तथा मीथेन आदि आती हैं। यह सभी एक जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) है।

इसका उपयोग घरों में ईंधन के रूप में ऊष्मीय विद्युत कारखानों में बिजली पैदा करने, खाद उद्योग में, टायर उद्योग में, हाइड्रोजन स्रोत के रूप में किया जाता है।

असीमित ऊर्जा के स्रोत (Unlimited Sources of Energy ) 

सोलर ऊर्जा (Solar Energy) 

सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सोलर ऊर्जा (Solar Energy) कहलाती है। ऊर्जा के विकल्प के तौर पर इसका सर्वाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि इससे वातावरण में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलता है। सूर्य ऊर्जा का एक असीम, सर्वसुलभ एवं सर्वाधिक सस्ता स्रोत है।

पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा व अच्छा स्त्रोत सूर्य है जो कि ऊर्जा को पृथ्वी पर विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में पहुँचाता है। पृथ्वी पर इस विकिरण ऊर्जा को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जा सकता है।

सोलर ऊर्जा की विशेषताएँ (Characteristics of Solar Energy)

सूर्य से सीधे प्राप्त होने वाली ऊर्जा में कई खास विशेषताएँ ह जो इस स्रोत को आकर्षक बनाती है। सोलर ऊर्जा की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

(1) सोलर ऊर्जा अत्यधिक विस्तारित, अप्रदूषणकारी तथा अक्षुण होता है।

(2) सम्पूर्ण भारतीय भूभाग पर 5000 लाख करोड़ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मी० के बराबर सोलर ऊर्जा आती है जो कि विश्व की सम्पूर्ण विद्युत खपत से कई गुना अधिक है।

(3) साफ धूप वाले (बिना धुंध व बादल के दिनों में प्रतिदिन का औसत सोलर ऊर्जा का अनुपात 4 से 7 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर तक होता है।

(4) भारत में एक वर्ष में लगभग 250 से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है।

सोलर ऊर्जा के उपयोग (Uses of Solar Energy) 

सोलर ऊर्जा के उपयोग निम्नलिखित हैं-

(1) सोलर संचालित परिवहन (Solar Powered Transportation)—फोटोवोल्टिक ऊर्जा का उपयोग करने का यह अच्छा तरीका है। सोलर ऊर्जा के उपयोग के रूप में सोलर शक्तियुक्त रेलगाडियाँ, सोलर ऊर्जा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए पीवी ऊर्जा द्वारा संचालित परिवहन को नवीन प्रयास करना चाहिए बसों विमानों तथा कारों को सोलर द्वारा संचालित किया जा सकता है।

(2) सोलर प्रकाश (Solar Light) - सोलर ऊर्जा से संचालित सोलर स्ट्रीट प्रकाश इसके (Solar street light) उपयोग का सामान्य उदाहरण है। एल.ई.डी. (LED) बल्ब के रूप में सोलर प्रकाश का उपयोग बहुत अधिक हो रहा है जिससे बिजली की खपत कम होती है।

सोलर कुकर (Solar Cooker) 

सोलर कुकर एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग सोलर ऊर्जा द्वारा भोजन पकाने में किया जाता है। यह एक बॉक्स की तरह होता है जो सामान्यतः लकड़ी का बना होता है। इसमें अन्दर से काले रंग से रंगी हुई एल्युमिनियम का एक बॉक्स लगाया जाता है तथा लकड़ी और एल्युमिनियम बक्सों के बीच ऊष्मा रोधी पदार्थ को भर दिया जाता है। जिससे बॉक्स के भीतर उत्पन्न ऊष्मा को यह पदार्थ बाहर न जाने दे और अन्दर में गर्मी बनी रहे।

काला रंग ऊष्मा का अच्छा अवशोषक होने के कारण एल्युमिनियम के बॉक्स को काले रंग से रंग दिया जाता है। इस बॉक्स के ऊपर एक पारदर्शी कांच का मोटा ढक्कन लगा होता है। इससे सोलर विकिरण की छोटी तरंगदैर्ध्य अन्दर तो जा सकती है परन्तु वापस नहीं आती है तथा कुकर के साथ एक दर्पण का भी उपयोग किया जाता है। इसे सूर्य की स्थिति के अनुसार सेंट किया जाता है और प्रकाश का परावर्तन करके कुकर के भीतर भेजा जाता है क्योंकि यह दर्पण परावर्तक का कार्य करता है।

इसमें प्रयुक्त बर्तनों का भी बाहरी आवरण काले रंग से पेन्ट कर दिया जाता है जिस प्रक्रिया के फलस्वरूप 3-4 घण्टों में कुकर के भीतर का तापमान 125°C पहुँच जाता है।

सोलर सेल (Solar Cell) 

सोलर सेल के द्वारा सोलर ऊर्जा को सीधे ही विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। सोलर सेल में प्रयुक्त P-N संधि में P सतह का क्षेत्रफल ज्यादा रखा जाता है। जिस पर धात्विक फिंगर इलेक्ट्रोड लगा होता है क्योंकि फोटॉन आपतन के लिए अधिक क्षेत्रफल चाहिए होता है। जब इस पर फोटॉन आपतित होता है तो सहसंयोजी बन्ध टूटने के कारण फोटो इलेक्ट्रॉन युग्म उत्पन्न होते हैं।

इलेक्ट्रॉन N - टाइप तथा होल P-टाइप में प्रवेश करते हैं। इससे P-N टाइप अर्द्धचालक में विभव उत्पन्न हो जाता है। यह एक परिपथ का निर्माण करते हैं जिसमें धारा N से P-टाइप की तरफ आती है। इसमें सिलिकॉन (Si) तथा आर्सेनाइड का प्रयोग किया जाता है।

पहला व्यापारिक सोलर सेल सन् 1954 में बनाया गया था जो लगभग 1.0% सोलर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था। अतः सोलर सेल का प्रयोग कैल्कुलेटर आदि में किया जाता है।

सोलर जल ऊष्मक (Solar Water Heater)

सोलर जल ऊष्मक का प्रयोग सोलर ऊर्जा की सहायता से जल को गर्म करने में किया जाता है।

इस एक कमारोपाता है जो अन्दर क होता है। इसमें की किसे होती है को कुण्डली के रूप में लगा दिया जाता है। क विशिष्ट ऊष्णा कम होती है तथा यह उमा का अच्छा सुचालक होता है। इस प्रक्रिया से अवशोषण क्षमता होती है। इसमें संवहन तथा विकिरण द्वारा ऊष्मा को रोकने के लिए इसके ऊपर भी मोटे लगा दिया जाता है।

जल पाइप के माध्यम से सोने की नली में जाता है जह ऊष्मा जो कि सूर्य से प्राप्त होती है के द्वारा जल गर्म हो जाता है। जब जल गर्म हो जाता है तो इसका भार ठण्डे पानी से कम हो जाता है। अतः गर्म जल हल्का होकर पाइप द्वारा कार्य हेतु उपलब्ध होता है। अनेक उपड़े प्रदेशों में इसका उपयोग पानी को गर्म करने में किया जाता है।

(2)पवन ऊर्जा (Wind Energy) 

पवन ऊर्जा का महत्त्व (Significance of Wind Energy)

वायु की गतिशीलता के कारण उत्पन्न गतिज ऊर्जा ही पवन ऊर्जा कहलाती है। इसे विभिन्न विधियों एवं उपकरणों का उपयोग करके ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित किया जाता है।

पवन ऊर्जा का महत्त्व निम्नलिखित है-

(1) पवन ऊर्जा पर्यावरण के अनुकूल होती है। इसमें ग्रीन डाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है।

(2) यह ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है तथा यह प्रकृति में निःशुल्क उपलब्ध है।

(3) पवन ऊर्जा के द्वारा विद्युत उत्पादन में भारत विश्व में जर्मनी, अमेरिका तथा स्पेन के बाद चौथे स्थान पर आता है। 

(4) पवन ऊर्जा से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए लगाए जाने वाले उपकरणों की लागत कम आती है।

पवन ऊर्जा का उपयोग (Uses of Wind Energy) 

पवन ऊर्जा का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में किया जा रहा है-

(1) इस ऊर्जा का उपयोग अनाज को पीसने की चक्कियों को चलाने में किया जा रहा है।

(2) इसका उपयोग पवन चक्की द्वारा जल पम्प चलाकर पृथ्वी के अन्दर से पानी निकालने में किया जाता है। गुजरात के ओखा में IMw की पवन चक्की संचालित है।

(3) इसका उपयोग पुराने समय से पालदार नावों को नदियाँ तथा समुद्रों में चलाने के लिए किया जाता रहा है जो कि यातायात का एक प्रमुख साधन है।

(4) पवन ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है। इसी कारण गुजरात के पोरबन्दर में लावा नामक स्थान पर इस ऊर्जा से 50 टरबाइने चलाई जा रही है। जिसकी क्षमता 2 अरब यूनिट विद्युत उत्पादन की है। 

(5) पवन ऊर्जा का उपयोग खेलों में भी किया जाता है.

जैसे-पतंग उड़ाने, सेलिंग (Sailing) आदि में ।

पवन चक्की (Wind Mill) 

पवन चक्की को ऐसे स्थान पर स्थापित किया जाता है जहाँ पर वायु तेज गति से लगातार हर मौसम में चलती रहे। | जिससे बिना रूके उत्पादन प्रक्रिया हो सके। पवन चक्की एक बड़े टावर पर लगे पंखों के माध्यम से प्राप्त ऊर्जा द्वारा चलाई जाती है। यह पंखे एल्युमिनियम के बनाए जाते हैं जो देखने में बिल्कुल साधारण पंखों की भाँति होते हैं। ये बड़े-बड़े पंखे या पंखुड़ियाँ एक पहिए पर लगी होती है।

यह पहिया इसमें लगे उर्ध्वाधर शाफ्ट के अक्ष के परितः घूमता है। जिस कारण पहिए का तल वायु की दिशा के लम्बवत हो जाता है। इसमें एक फ्रैंक का उपयोग किया जाता है, जो एक तरफ पहिए की शाफ्ट तथा दूसरी तरफ सम्पर्क छड़ से जुड़ी होती है। यह सम्पर्क छड़ ही संचालित मशीन के सिरे से बद्ध होती है।

जब हवा तीव्र गति से चलती है तो पंखुड़ियाँ घूमती हुई गति करती हैं तथा वायु की गतिज ऊर्जा, यान्त्रिक ऊर्जा में बदल जाती है तथा उससे सम्बंधित शॉफ्ट, क्रैक तथा सम्पर्क छड़ गतिमान हो जाते हैं और मशीन का संचालन प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार की पवन चक्की की दक्षता 25% होती है।

पवन चक्की का उपयोग करके पानी खीचने की प्रक्रिया दर्शायी गई है। इसमें लगे क्रैक के द्वारा ही पम्प का प्लन्जर ऊपर-नीचे गति करता है। जिससे जल का निष्कासन सम्भव हो पाता है। वायु के तीव्र होने पर इसकी दक्षता बढ़ जाती है जिससे उत्पादन क्षमता भी बढ़ जाती है।

(3) ज्वार भाटीय ऊर्जा (Tidal Energy) 

ज्वार भाटीय ऊर्जा, ज्वार से प्राप्त ऊर्जा होती है। चन्द्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण समुद्र जल का चढ़ना ज्वार कहलाता है तथा समुद्र जल का उतरना भाटा कहलाता है। सागर में ज्वारीय तरंगें दिन में दो बार उठती और गिरती हैं। समुद्र की ओर संकीर्ण खुली जगह पर ज्वारीय बैराज या ज्वारीय बांध का निर्माण करके ज्वारीय ऊर्जा को काम में लाया जाता है।

समुद्र की लहरों में आने वाले जल के उछाल तथा गिरावट से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त की जाती है। सर्वप्रथम चीन व रूस में छोटे ज्वारीय संयंत्र स्थापित किए गए थे। विश्व में बहुत कम स्थानों पर ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।

समुद्रीय उष्म ऊर्जा परिवर्तन ( OTEC) और तरंग ऊर्जा में उष्ण कटिबन्धीय जल के गर्म सतही समुद्री जल (28-30°C) और 800 से 1000m गहराई वाले गहरे समुद्र जल (5-7°C) के बीच का तापमान अन्तर विद्युत उत्पन्न करने के लिए टरबाइन को चलाने में होता है।

ज्वार ऊर्जा का उपयोग (Uses of Tidal Energy )

ज्वारीय ऊर्जा का उपयोग विशेषकर विद्युत उत्पादन में किया जाता है। ज्वार भाटीय ऊर्जा के उपयोग को निम्नवत् बताया गया है-

(1) कम लागत पर अधिक विद्युत उत्पादन में ज्वारीय ऊर्जा का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है।

(2) विद्युतीय मशीनों को चलाने में।

(3) हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम में ऊर्जा को संचित करने के लिए। 

(4) तापीय प्रयोजनों में ।

नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy)

अधिक भार वाले तत्वों के समस्थानिकों के नाभिक पर न्यूट्रॉन की बौछार करने पर इनके नाभिक टूटने तथा नवीन तत्वों के निर्माण के फलस्वरूप निष्कासित होती है जिसे 'नाभिकीय ऊर्जा' (Nuclear Energy) कहते हैं ।

नाभिकीय ऊर्जा निम्न दो प्रकार की क्रियाओं उत्पन्न होती है-

(1) नाभिकीय विखण्डन (Nuclear Fission)- यह एक ऐसा नाभिकीय परिवर्तन है जिसमें कुछ समस्थानिक (Isotopes) तत्वों के अधिक आणुविक भार (Large Mass Numbers) वाले नाभिक पर न्यूट्रॉन की बौछार करके हल्के अणुओं में विघटित किया जाता है।

(2) नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)- इस प्रक्रिया में दो कम भार वाले समस्थानिकों को बहुत अधिक  तापमान लगभग 1 अरब डिग्री सेल्सियस तक मिलाया जाता है, जब तक वे संलयन के द्वारा एक भारी समस्थानिक के रूप में नहीं बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया में भारी ऊर्जा अवमुक्त होती है। यह अत्यन्त कठिन प्रक्रिया है परन्तु इससे बहुत अधिक ऊर्जा का उत्पादन होता है।


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