मृदा (मिट्टी) एक ऐसा पदार्थ है जो पृथ्वी की सतह बनाता है। मिट्टी का निर्माण लाखों वर्षों की प्रक्रिया है। मिट्टी के निर्माण में अनेक बाहरी शक्तियाँ अपना प्रभाव चट्टानों पर डालकर उन्हें कमजोर कर देती हैं, जिससे उनके बारीक-बारीक कण अलग होते जाते हैं तथा मिट्टी का निर्माण होता रहता है। मिट्टी के निर्माण में भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी भौतिक शक्तियाँ बड़े-बड़े पहाड़ों को तोड़कर चट्टानों को सरका देती हैं । रासायनिक शक्तियाँ चट्टानों में पाये जाने वाले यौगिकों जल, वायु आदि से विभिन्न रासायनिक क्रियाएँ मिट्टी बनाने में सहायक हैं। इसके अतिरिक्त जैविक शक्तियाँ भी सूक्ष्म जीवों आदि के द्वारा मिट्टी के निर्माण में सहायता करती हैं।
प्राचीन काल में पृथ्वी की सतह बहुत कड़ी तथा चट्टानों से बनी थी। ये चट्टानें तीव्र भूकम्पों के कारण छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट गयीं जिससे पृथ्वी के गर्भ से लावा निकलकर दूर-दूर तक पृथ्वी की सतह पर फैलकर जम गया । चट्टानों की दरारों में उपस्थित जल ठण्डा होने से चट्टानों की दरारों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल गयीं। पानी के तेज बहाव के कारण चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े सूक्ष्म कणों में बदल गये । पेड़-पौधों की जड़ों के चट्टानों की दरारों में प्रवेश करने से जड़ों के दबाव से चट्टानों का अपक्षय हो जाता है। चट्टानों के क्रम से क्षय और रगड़ से छोटे-छोटे तथा बारीक कणों अथवा मृदा का निर्माण हुआ ।
चट्टानों का अपक्षय हो जाती है। बारीक कणों अथवा मृदा का निर्माण हुआ। दाद तथा मृदा के निर्माण में भूकम्प, ज्वालामुखी का लावा, पानी, बर्फ, जड़ों के दबाव से चट्टानों के छोटे-छोटे कणों का एक स्थान से दूसरे स्थान को उड़ना एवं चट्टानों का क्षम और रगड़ आदि मृदा में सहायक होते हैं।
मृदा (मिट्टी) के कणों के प्रकार-
1. चिकनी मिट्टी (Clay)
2. गाद (Silt)
3. ठोस बालू (महीन रेत)
4. मोटी बालू (Coarse Sand)
5. शिला (Stone) तथा बजरी (Gravel)
मृदा (मिट्टी) के प्रकार
1. बलुई मिट्टी (Sandy Soil) — इस मिट्टी के कणों का आकार अधिक होने के कारण इनमें पानी रोकने की क्षमता कम होती है तथा इसके कणों के बीच में वायु अधिक होती हैं। इस मिट्टी में पोषक तत्त्व नहीं पाये जाते हैं अतः यह मिट्टी पौधों के लिए कृषि 743 उपयोगी नहीं है । इसे रेगिस्तानी मिट्टी भी कहते हैं । यह राजस्थान और गुजरात के मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि उगाये जाते हैं ।
2. चिकनी मिट्टी (Clay Soil) — चिकनी मिट्टी के कण अत्यन्त बारीक होते हैं। इस मिट्टी में सबसे कम छिद्र के कारण पानी का अवशोषण अधिक परन्तु धीरे-धीरे होता है । अतः पानी की अधिकता के कारण यह मिट्टी कम उपयोगी होती है।
3. दोमट मिट्टी (Loamy Soil)— बालू, चिकनी मिट्टी तथा खाद के मिश्रण को दोमट मिट्टी कहते हैं।
4. जलोढ़ मिट्टी-यह मिट्टी नदियों द्वारा निक्षेपित महीन गाद से निर्मित होती है । यह संसार की सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टियों में से एक है। यह भारत के उत्तरी मैदान और प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में गेहूँ, चावल, गन्ना इत्यादि फसलें बहुत होती हैं।
5. काली मिट्टी (Black Soil) – यह ज्वालामुखी शैलों से बनी मिट्टी होती है। यह नमी के लम्बे समय तक संजोये रखती है। भारत में यह महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात के कुछ भागों में मिलती हैं। यह मिट्टी कपास, गेहूँ आदि की फसल उगाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है ।
6. लाल मिट्टी (Red Soil) -आग्नेय शैलों से बनी यह भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी और पूर्वी भागों के कृष्ण और शुष्क भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी कम उपजाऊ है । परन्तु उर्वरकों की सहायता से इसमें फसलें उगायी जा सकती हैं ।
7. लैटराइट मिट्टी-पश्चिमी घाट, नागपुर के पठार और उत्तर पूर्वी राज्यों के कुछ भागों में पहाड़ी प्रदेशों की गर्म जलवायु और वर्षा की अधिकता वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। भारी वर्षा के कारण मिट्टी की ऊपरी सतह के पोषक तत्त्व घुलकर बह जाते । अतः यह कम उपजाऊ होती है।
8. पर्वतीय मिट्टी — हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में मिट्टी का आवरण बहुत पतला है जबकि घाटियों में यह अधिक गहरा है । इन प्रदेशों की मिट्टी को पर्वतीय मिट्टी कहते हैं। घाटियों में चाय, चावल व कई किस्मों की फसलें उगायी जाती हैं।
9. बलुई दोमट मिट्टी (Sandy Loamy Soil) - यह बलुई तथा दोमट मिट्टी का सम्मिश्रण है। इसमें रेत की मात्रा 60% से 80% तक होती है तथा शेष चिकनी मिट्टी होती है। आलू और मूँगफली की उपज के लिए यह मिट्टी उपयुक्त है
10. पथरीली मिट्टी (Rocky Soil)—यह मिट्टी प्रायः पहाड़ी प्रदेशों में पाई जाती है। इस मिट्टी में चिकनी मिट्टी के साथ कंकड़-पत्थर भी मिले रहते हैं । इसका धरातल भी समतल नहीं होता। यह कृषि के लिए अयोग्य है।
मिट्टी का अपरदन
मृदा के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने अथवा मूल स्थान से हट जाने को "मृदा अपरदन" कहते हैं। यह तेज आँधी तूफान एवं वर्षा के जल द्वारा होता है।
मृदा अपरदन से हानियाँ- मृदा अपरदन से निम्नलिखित हानियाँ हैं.
(1) मृदा अपरदन के कारण मिट्टी की ऊपरी परत हट जाती है जिससे वह भूमि अत्यधिक उपजाऊ नहीं रहती है।
(2) अत्यधिक अपरदन से भूमि ऊँची-नीची हो जाती है।
मिट्टी के कटाव के कारण
मिट्टी के कटाव के निम्नलिखित कारण हैं—
(1) भूमि का ढाल—भूमि का ढाल अधिक होने से उसमें बहने वाला पानी मिट्टी को अधिक काट देता है । ढाल कम होने से पानी का वेग कम रहेगा और मिट्टी का कटाव कम रहेगा ।
(2) वर्षा की अधिकता —अधिक वर्षा के कारण मिट्टी बह जाती है। अधिक वर्षा होने से नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिसके कारण बहुत-सी उपजाऊ मिट्टी बहकर समुद्र में चली जाती है । वैज्ञानिक अनुमानों के आधार पर प्रतिवर्ष 37.5 लाख मीटर टन मिट्टी बंगाल की खाड़ी में चली जाती है।
(3) तीव्र हवाएँ—तेज हवाओं के चलने के कारण भी मिट्टी का कटाव होता है। तेज वायु के साथ पत्थर के टुकड़े आदि भी उड़ते हैं, जो घर्षण द्वारा मिट्टी को काट देते हैं। रेगिस्तान में यह क्रिया अधिक मात्रा में होती है।
(4) वनों की कमी—वनों की कमी के कारण भूमि ठोस नहीं रहती है। जैसे वर्षा का जल आसानी से काट देता है। वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँधकर रखती हैं तथा जल के वेग को भी कम करती है। इससे भमि का कटाव नहीं होता ।
(5) मिट्टी का प्रकार-मिट्टी का कटाव मिट्टी के प्रकार पर भी निर्भर करता है। कोमल मिट्टी, पथरील मिट्टी की अपेक्षा अधिक बहती है।
(6) तापमान में परिवर्तन—तापमान में शीघ्रता से परिवर्तन होने के कारण मिट्टी का कटाव होता है । दिन में अधिक गर्मी और रात्रि में अधिक ठण्ड होने से भी चटटने टूटती हैं।
(7) पशुओं के चरने से – पशुओं को चरने से पृथ्वी की सतह की घास नष्ट हो जाती है । घास मिट्टी को बाँधे रहती है। घास के न होने से मिट्टी ऊपर आ जाती है और कटाव प्रारम्भ हो जाता है 1
(8) हवा से कटाव—वनस्पति पैदा न होने और पानी की सतह नीचे हो जाने से हवा से भूमि का कटाव होने लगता है। इससे जमीन सूख जाती है और भूमि ऊबड़- खावड़ हो जाती है तथा उसकी नमी समाप्त हो जाती है। फलस्वरूप भूमि की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है।
(9) नदियों की बाढ़ से कटाव-गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी तथा महानदी आदि नदियों में तथा इनकी सहायक नदियों में भयंकर बाढ़ आने से भूमि की मिट्टी कट जाती है, जिससे अपार धन-जन की हानि होती है। अधिक संख्या में लोग बेघर हो जाते हैं ।
भूमि के अपरदन को रोकने के उपाय (Preservation of Soil Erosion)- भूमि के कटाव अग्रलिखित प्रकार से रोका जा सकता है—
(1) अधिक वन लगाये जाने चाहिए और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए।
(2) नदियों के आस-पास की भूमि की सुरक्षा करनी चाहिए । बाँध एवं जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए ।
(3) अधिक क्षेत्रों में कृषि करनी चाहिए कृषि के तरीकों में भी सुधार करना चाहिए।
(4) मरुस्थलों में अधिक पेड़ लगाने चाहिए।
(5) कृषि क्षेत्र में फालतू पानी के निकास के लिए नालियाँ बना देनी चाहिए।
(6) ढालू जमीन पर सीढ़ीदार खेती की जाये।
(7) अदल-बदल कर फसलें बोनी चाहिए।
(8) हवा से भूमि कटाव को रोकने के लिए हरी खाद या कम्पोस्ट खाद डाली जाये । पेड़ों की पट्टियाँ लगाकर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए।
(9) परतदार कटाव रोकने के लिए खेतों पर मेड़ बना देनी चाहिए और उस पर कोई वनस्पति उगा देनी चाहिए ।
(10) बाढ़ वाले क्षेत्रों में कटाव कम करने के लिए क्षेत्र के दोनों ओर वन लगाकर पानी को इधर-उधर निकाल देना चाहिए ।